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मंगलवार, जून 03, 2014

ये सोचकर मन बहलाया...



होंठों की हंसी कहां गयी?
नैनों में नीर कहां से आया।
इस चमन में कल चहल-पहल थी,   ,
आज सूनापन क्यों  है छाया...

चली कहीं से ऐसी पवन,
उजड़  गया,  पल भर  में उपवन,
मैं बस केवल  देखता रहा,
कुछ भी मेरे हाथ न आया...

पूछा मैंने फूलों से,
तुम इतनी जल्दी क्यों मुर्झाए,
कहते कहते रो पड़े,
मन का भेद, मन में  छुपाया,

जो हुआ, वो होनी है,
जो उजड़ गया, नशवर था,
खिलेंगे फूल, महकेगा चमन,
ये सोचकर मन बहलाया...

1 टिप्पणी:

  1. जो हुआ, वो होनी है,
    जो उजड़ गया, नशवर था,
    खिलेंगे फूल, महकेगा चमन,
    ये सोचकर मन बहलाया...
    ...
    सच चमन कभी खाली नहीं होता
    बहुत सुन्दर

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