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मंगलवार, दिसंबर 10, 2013

आम आदमी...[कुलदीप ठाकुर]



सोचा कैसे कुर्सी पाएं,
"आमआदमी" नाम से पार्टी बनाएं,
सब दलों को भ्रष्ट बताकर,
खुद को इमानदार बताएं...

जहां चुनाव केवल छलावा है,
कुर्सी के लिये बस दिखावा है,
जहां व्याप्त है केवल भ्रष्टाचार,
वहां पटेल, शास्त्रि   कहां से आये...

कभी तो   की पद यात्रा,
कभी  रथ यात्राएं निकाली,
कभी  चले साइकलों पर,
जंता पागल बनती जाए...

आसान नहीं है सिंहासन पाना,
पड़ता है झाड़ू तक भी उठाना,
जब सारे नुस्के फेल हो गये,
भाषण, वादे काम न आये...

समस्याओं में घिरा है "आम आदमी",
न वोट मांगता है "आम आदमी",
"आम आदमी" चाहता है केवल,
रोटी, कपड़ा, मकान मिल जाए...



7 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक उम्दा रचना

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  2. समय का सुन्दर बिम्ब

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  3. उसी की तो लड़ाई है ... आप को आम आदमी के साथ मिल के लड़नी है ...

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  4. ...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत अभिव्यक्ति...

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  5. मिल गया है भीड़ में गुम आम आदमी को 'आप' का नेतृत्व।

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