स्वागत व अभिनंदन।

मंगलवार, सितंबर 18, 2012

आप की जुदाई पर।


सिस्कियाँ लेकर आया सवेरा, उदास है हरेक चेहरा,

सूनी है प्रकृति सारी, आप की जुदायी पर।

 

न हैं फूलों पर मुस्कान, न गा रहे हैं विहग गान।

नम  है देखो सभी नेत्र, आप की जुदायी पर।

 

झरने की कलकल, तुम्हे बुलाती, पवन विरह गीत सुनाती,

आईना आंसू बहा रहा है, आप की जुदायी पर।

 

दुखी है आज रजनीकर, कानन, विटप  निर्झर,

मेघों में रवि गुम है, आप की जुदायी पर।

 

दसों दिशाएं हैं उदास, दुखी है धर्ति और आकाश,

मन्दिर में भगवान मऔन है, आप की जुदाई पर।

रविवार, सितंबर 16, 2012

चड़ते सुरज को स्लाम।


कल तक जिसका शोषण किया, पहना रहे हैं उसे फूलों कि माला,

कल तक था वो सड़कछाप, आज है वो पैसे वाला।

जब तक जेब में पैसा है, तब तक बनेंगे सभी यार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

हरा भरा था जब मेरा बाग, पंछी  वहाँ गाते थे राग।

 अली फूलों पर  मंडराते थे, सभी प्राणी आनन्द पाते थे।

जब से बाग में पतझढ़ आयी, तब से सूना है गुलज़ार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

खूबसूरत  थी जब वो नार, मिला उसे सब का प्यार,

सभी उसके पास जाते थे, अपना मन बहलाते थे,

जब तन कि कांती उड़ गयी, न मिला उसे किसी का प्यार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

 चढ़ते सूरज को स्लाम, करता है जग तमाम।

डूबते सूरज कि ओर,  से ऐ जग मुंह  न मोड़,

अस्त  हुआ है जो सूरज आज, उदय होगा यही हर बार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सरा संसार।

 

 

गुरुवार, सितंबर 13, 2012

हिंदी के सिंहासन पर।


हिन्दी दूर है हिन्दूस्तान से, नाम के लिये है राष्ट्र भाषा,

शायद हम भूल गये हैं, राष्ट्र भाषा की परिभाषा।

अरब में सुनाई देती  है  अरबी, बोलते हैं जापान मैं जापानी,

चाइना में चाइनीज़, इरान में इरानी, नहीं बोलते हैं  हिन्दी हिन्दूस्तानी।

जहाँ हिन्दी बोली जाती है, वो बहुत कम ही स्थान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

दूध पीते बच्चों को, अंग्रेजी  यहां सिखाते हैं,

हिन्दी सीख कर क्या बनेगा, बच्चों को समझाते हैं।

भारतीयों के मुख पर तो, अंग्रेजी  ही छाई है, हिन्दी के शब्दों की तो बस केवल परछाई है।

हिन्दी का निज देश में, हो रहा अपमान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अन्ग्रेजी विराजमान है।

 

हमारी जननी आज घर से, बहुत दूर हो गयी है,

वेदनायें है दिल में उसके, उदास बैठी रो रही है।

उमीद है उसे बहुत जल्द, भारतेंदू कोई आयेगा,

उसे अपने घर ले जाकर, खोया सम्मान  दिलायेगा।

शुक्ल प्रशाद और गुप्त, पुकारती कयी नाम है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

पुरा हुआ मैकाले का स्वप्न, बहुत ही आसानी से,

लगता है भारतीय अंग्रेज  रूचि विचार और वाणी से।

नहीं  जानेंगे  अगर  हम अपनी भाषा, अपना इतिहास क्या जानेंगे,

अपनी संस्कृति सभ्यता, को कैसे हम मानेंगे।

प्रेमचन्द को हम भूल गये, शैक्सपियर का ध्यान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

हिन्दी हमारी जननी है, इस के महत्व को जानो,

छिपा है इस में अलौकिक ज्ञान, उस ज्ञान को पहचानो।

सूर तुलसी ने इसे संवारा  मीरा ने किया शृंगार,

देवों की भाषा है ये, अलौकिक है इस का संसार।

अनन्त है इस का सागर, इस में लिखे वेद पुराण है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।

 

राष्ट्र की प्रगति के लिये, हिन्दी को अपनाना होगा,

हिन्दी  देश की बिन्दी है, सब को ये समझाना होगा।

वो दिन न जाने कब आयेगा, जब हिन्दी होगी हर मुख पर,

हिन्दी सब की भाषा होगी, रहेंगे सब मिल-झुलकर।

वो दिन अब आने वाला है, ये मेरा ऐलान है,

हिन्दी के सिंहासन पर, अंग्रेजी  विराजमान है।


 

रविवार, सितंबर 09, 2012

प्यार कभी मरता नहीं है।


प्यार कभी मरता नहीं, जीवित रहता है, मरने के बाद भी

प्यार तन से नहीं होता, प्रेम प्यास है आत्मा की।

शायद इस दुखयारी की, आस्था नहीं है भगवान में,

नित्य पूजा की थाली लेकर, जाती है शमशान में।

वृक्ष के नीचे पूजा करके, दीपक वहाँ जलाती है,

फिर नैनों के जल से उस दीपक को बुझाती है,

जातेहुए कुछ सूखे फूल, बिखेरती उस स्थान में।

नित्य पूजा की थाली लेकर, जाती है शमशान में।

उस के जाने के बाद वहां कोई, रोता हुआ आता है,

उन सूखे हुए फूलों  को, सीने से लगाता है।

फिर बुझा हुआ दीपक जलाकर, उड़ जाता है आसमान में,

नित्य पूजा की थाली लेकर, जाती है शमशान में।

 

शनिवार, सितंबर 01, 2012

सपने।


मेरी आंखों में जब देखे सपने,

मुझसे बोला  मुझे देदो सपने,

पैसा चाहे जितना भी लेलो,

बेच दो मुझे अपने सपने।

पैसे नहीं है तुम्हारे पास,

क्यों सजाये है सुनहरे सपने,

नहीं कर पाओगे पैसे बिना,

पूरे तुम अपने सपने।

क्रोधित होकर बोला  मुझसे,

लेले  पैसे, देदे  सपने।

 

नहीं नहीं मैं नहीं दूंगा,

अपनी आंखो के सपने,

मैं कंगाल हूं, नहीं है पैसे,

मेरे पास है केवल सपने,

चन्द पैसों में  बेच दूं  अगर,

अपनी आंखों के सुनहरे  सपने,

कल पैसों में भी नहीं मिलेंगे

ऐसे सुन्दर प्यारे सपने।

कभीसोता हूं राज महल में,

कभी देखता हूं गाड़ी के सपने।

करता हूं विवाह अपस्रा से,

देखता हूं कयी रानियों के सपने।

 

नहीं नहीं मत छीनो मुझसे,

रहने दो मेरी आंखों में सपने,

हम ग्रीब हैं, हमतो बस,

देख सकते हैं केवल  सपने।

धन नहीं है, दौलत नहीं है,

हमारे पास है केवल सपने।