स्वागत व अभिनंदन।

रविवार, सितंबर 16, 2012

चड़ते सुरज को स्लाम।


कल तक जिसका शोषण किया, पहना रहे हैं उसे फूलों कि माला,

कल तक था वो सड़कछाप, आज है वो पैसे वाला।

जब तक जेब में पैसा है, तब तक बनेंगे सभी यार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

हरा भरा था जब मेरा बाग, पंछी  वहाँ गाते थे राग।

 अली फूलों पर  मंडराते थे, सभी प्राणी आनन्द पाते थे।

जब से बाग में पतझढ़ आयी, तब से सूना है गुलज़ार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

खूबसूरत  थी जब वो नार, मिला उसे सब का प्यार,

सभी उसके पास जाते थे, अपना मन बहलाते थे,

जब तन कि कांती उड़ गयी, न मिला उसे किसी का प्यार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सारा  संसार।

 

 चढ़ते सूरज को स्लाम, करता है जग तमाम।

डूबते सूरज कि ओर,  से ऐ जग मुंह  न मोड़,

अस्त  हुआ है जो सूरज आज, उदय होगा यही हर बार,

स्वार्थी भगवान ने, बनाया है सरा संसार।

 

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप अच्छा लिखते हैं कुलदीप जी....
    सुन्दर भाव है...
    कुछ मात्र संबंधी गलतियाँ टाइपिंग में हुई हैं जो खटकती हैं...उन्हें सुधार लीजिए बस.
    :-)अन्यथा न ले...

    लेखनी चलती रहे अनवरत....
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी5:11 pm

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