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रविवार, अगस्त 26, 2012

phoot parhi hai geet bankar. फूट पड़ी है गीत बनकर।


कन्ठ में मेरे, स्वर है तेरे, गीत हैं प्रेम के अधरों पर,

नैनों में है जो  छवी तुम्हारी,  फूट पड़ी है गीत बनकर।

 

 तनसुन्दर मन सुन्दरतम,सुन्दर हो तुम जग में सबसे,

तन की पावनता, मन की सुन्दरता,  फूट पड़ी है गीत बनकर।

 

तुम रति हो या मैनका, या किसी  नव लोक से आयी हो,

तुम्हारे अधरों की मधुर मुस्कान, फूट पड़ी है गीत बनकर।

 

कालीदास के नैनों में भी, तुम सी सुन्दर कोई छवि होगी,

जो दिखती  होगी हर शै में, फूट पड़ी है गीत बनकर।

 

मधुर वानी, पुष्प सा  स्वभाव, नैनों से छलकता  प्रेम,

तुम्हारी आहट मेरी प्रतीक्षा, फूट पड़ी है गीत बनकर।

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया

    अच्छा लगा आपका ब्लॉग।

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  2. बेहतर अभिव्यक्ति

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  3. दिल को छू देने वाली कविता है।

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