ओ गुड़िया!
तुम ने भी तो
हवस के उन दरिंदों से
अपनी रक्षा के लिये.
द्रौपदी की तरह
ईश्वर को ही
पुकारा होगा
पर तुम्हे बचाने
....ईश्वर भी नहीं आए....
ओ गुड़िया!
तुम भी तो
उसी देश की बेटी थी
जहां बेटियों को
देवी समझकर पूजा जाता है
जहां की संस्कृति में
कन्या ही दुर्गा का रूप है.
ओ मां चंडी!
क्या कलियुग में तुम ने भी
असुरों को दंड देना छोड़ दिया?
....ये जालिम तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....
ओ गुड़िया!
तुमने भी सपने देखें थे
झांसी की रानी, कल्पना चावला
और भी ऊंची उड़ान भरने के,
ऊंची उड़ान भरने से पहले ही
तुम्हे नोच दिया
उन जालिम दरिंदों ने.
न तुम रो सकती हो अब
न तुम जी सकती थी अब
...तुम्हे पाषाण बना दिया है इन जालिमों ने....
ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....
दुख:द शर्मशार करने वाली घटना हम कहाँ जा रहे हैं?
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-07-2017) को "जब-जब ये सावन आता है" चर्चा - 2673 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय के टूटने की आवाज़ कोई टूटे हुए हृदय वाला ही सुन सकता है वो असहनीय पीड़ा कोई चोटिल ही महसूस कर सकता है ,बहुत सुन्दर हृदय से निकले शब्द आदरणीय "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंसमाज के चेहरे पर लगे बदनुमा दाग़ दिखाती संवेदनशील रचना.
जवाब देंहटाएंह्रदय को द्रवित करती पंक्तियाँ -
ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....
अब गुडिया ही भस्म करेगी असुरों को. बहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएं