स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, जुलाई 20, 2017

ओ गुड़िया!


ओ गुड़िया!
तुम ने भी तो
हवस के उन दरिंदों से
अपनी रक्षा के लिये.
द्रौपदी   की तरह
ईश्वर को ही
पुकारा  होगा
पर तुम्हे बचाने 
....ईश्वर भी नहीं आए....

ओ गुड़िया!
तुम भी तो
उसी देश की बेटी थी
जहां बेटियों को
 देवी समझकर पूजा जाता है
जहां की संस्कृति  में
कन्या ही दुर्गा का रूप है.
ओ मां चंडी!
क्या कलियुग में तुम ने   भी
असुरों को दंड देना छोड़ दिया?
....ये जालिम  तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....

 ओ गुड़िया!
तुमने भी सपने देखें थे
झांसी की रानी,  कल्पना चावला
और भी ऊंची उड़ान भरने के,
ऊंची  उड़ान भरने से पहले ही
 तुम्हे नोच दिया
उन जालिम दरिंदों ने.
न तुम रो सकती हो अब
न तुम जी सकती थी अब
...तुम्हे पाषाण बना दिया है  इन जालिमों ने....

ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
 मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
 एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
 लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....

मंगलवार, जुलाई 11, 2017

पर सब ईश्वर नहीं बनते।....

[दिनांक 28 जून 2017 को पूजनीय पिता श्री की समृति में जन सेवा के उदेश्य से एक पीने के पानी का नल स्थापित किया गया साथ ही पूजा उपरांत पिता जी की फोटो दिवार पर स्थापित की गयी]
 ओ पिता जी
अब तो तुम भी
ईश्वर बन गये हो,
तभी तो
ईश्वर की तसवीर के साथ
तुम्हारी तसवीर भी
हार पहनाकर
दिवार पर टांग दी गयी है....

ये तुम्हारी तसवीर भी
जैसे मानो कह रही हो हम से
मैं मरा नहीं,
अभी भी   जीवित  हूं,
घर की हर चीज में,
तुम्हारी यादों में भी।
मरते तो हर रोज कई हैं।
पर सब ईश्वर  नहीं बनते।....