इन 32 वर्षों में,
सब कुछ बदला है।
पर्व, मेले, त्योहार भी,
रिति-रिवाज, संस्कार भी।
पीपल नीम अब काट दिये,
नल, उपवन भी बांट दिये,
अब चरखा भी कोई नहीं बुनता,
दादा की कहानियां भी नहीं सुनता।
मेरा गांव, शहर बन गया,
भाईचारा अपनापन गया।
पहले घर थे चार,
पर नहीं थी बीच में दिवार।
अब घर चालिस बन गये,
सब में गेट लग गये।
अब आवाज देकर नहीं बुलाते,
मोबाइल से ही नंबर मिलाते।
पर आज भी नहीं बदली,
मेरे आनंद की वो गंगा,
जिसके पास,
स्नेह, ममता, त्याग,
आज भी पहले से अधिक है।
पर मैं जानता हूं,
वो अब थक चुकी है,
वो अब खाना नहीं बना सकती,
पर नहीं मानती,
घर में खाना वोही बनाती है।
वो नहीं देना चाहती,
अपना ये अधिकार किसी को,।
सत्य कहूं तो,
मुझे दुनियां में,
सबसे अच्छा,
मां के हाथ का भोजन ही लगता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 05 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसच कुलदीप जी हमारे देखते देखते कितना कुछ बदल जाता है ..माना कि बदलाव प्रकृति का नियम है लेकिन जब अच्छी चीजे , बातें आदि बदलने लगती हैं तो मन में एक अनकहा दर्द तो होता ही ही ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंsatya vachan
जवाब देंहटाएंसत्य कहा कुलदीप जी सब बदल जाता है केवल नही बदलती है सिर्फ माँ दुनिया में एक स्वर्गीय अनुभव देने वाला महान रिस्ता
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामना ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएं