स्वागत व अभिनंदन।

मंगलवार, जून 28, 2016

मैंने घर नहीं, एक मकान बनाया है....

आज सुबह फिर
मेरे पड़ोस से,
हंसमुख दादा   की
वोही आवज सुनाई दी,
"अब हाथ में लाठी,
आंख पे ऐनक,
थके पांव,
तन पे झुर्रियाँ
न मुंह में दांत,
झड़ गये बाल
बोलो बेटा
अब कहां जाऊं"...
याद आया मुझे,
एक दिन खलियान में,
हंस मुख दादा,
अपने मित्र से रोते हुए बोले थे,
"एक ख्वाइश थी,
अपना घर हो,
ख्वाइश पूरी करने के लिये,
दिन रात एक किये,
घर बन भी गया,
पर आज पता चला,
मैंने घर नहीं,
एक मकान बनाया है"....

शुक्रवार, जून 17, 2016

अब क्या करें?

शौक आदत बन गयी
अब क्या करें?
नशा है जहर
अब क्या करें?
आशाएं मां-बाप की
दर दर भटक रही,
उनके बिखरे  अर्मानों का,
अब क्या करें?
समझाया था बहुत
न सुनी तब  किसी की,
ओ समझाने वालों बताओ,
अब क्या करें?
न होष है खुद की
न पास है कोई हितेशी, 
 जीवन है अनुमोल,
अब क्या करें?
वो दोस्त  भी तबाह है
जिसके साथ धुआं उड़ाया,
जेब भी है  खाली,
अब क्या करें?
ऐ दोस्त तुने मुझे,
नशे की जगह जहर दिया  होता,
न जीना पड़ता इस हाल में,
अब क्या करें?