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शुक्रवार, नवंबर 07, 2014

बापू...

बापू
 मैंने सुना है
किताबों में भी पढ़ा है
तुम भारत के सब से
निर्धन आदमी की तरह
जीवन जीते थे।


मैं ये भी जानता हूं
तुम अपना  हर  काम
स्वयं करते थे।
तुम तो
पहनने के लिये कपड़ा भी
अपने हाथों से बुना करते थे।
तुम्हारा चरित्र तुम्हारी लिखी
किताबों के दर्पण में
देखा है मैंने।

इस लिये आज
मैं महसूस कर सकता हूं कि
तुम्हारी आत्मा भी
आहत होगी
जब हर नेता की
प्रतिमाएं बनाने के लिये
हो रहा है खर्च
वो पैसा जिससे
देश के कयी जनों को
रोटी,
फुटपातियों को
घर,
अभागों को
शिक्षा,
मिल सकती थी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. देश के कयी जनों को
    रोटी,
    फुटपातियों को
    घर,
    अभागों को
    शिक्षा,
    मिल सकती थी।..Good message......,.bahut hi sahi pakch ko pesh kiya hai aapne apni es kavita me,.....kaash desh ke neta yah samajh paaye.......

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