स्वागत व अभिनंदन।

सोमवार, अक्टूबर 06, 2014

हमे है पथ बनाने की आदत...

हमे हैं धोखा खाने की आदत,
अपने गमों को छुपाने की आदत,
पथरीला  है ये  रास्ता,
 हमे वहीं है जाने की आदत...

मांगा सूरज से प्रकाश,
पर सूरज ने दी तपश,
होने वाली  है अब शाम,
न है दीपक जलाने की आदत...

कहती है अक्सर मां,
मैंने तुमको दिया सब कुछ,
भाग्य तो तुम्हारा अपना है,
उन्हे मंदिर जाने की आदत...

मंजिल मिले या  न मिले,
चलना है बस  केवल हमे,
काम है किसी का शूल बिछाना,
हमे है पथ बनाने की आदत...

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (07-10-2014) को "हमे है पथ बनाने की आदत" (चर्चा मंच:1759) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मंजिल मिले या न मिले,
    चलना है बस केवल हमे,
    काम है किसी का शूल बिछाना,
    हमे है पथ बनाने की आदत...
    ...वाह...बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...

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  3. Bahut Zabrdast .... Hame hai hai path banaane ki aadat aur ek ye aadat hi sabko mushkilo ko maat de deti hai !!!!

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  4. मंजिल मिले या न मिले,
    चलना है बस केवल हमे,
    काम है किसी का शूल बिछाना,
    हमे है पथ बनाने की आदत...
    ....नेक दिल इंसानों को एक दिन उनकी राह जरूर मिलती है

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  5. वाह...कमाल की नज़्म कही है आपने...बधाई

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