हर उत्सव, त्योहारों पर,
होती थी मेरी पूजा,
हर पूजा, यज्ञ के भोग का,
प्रथम अंश खिलाते थे मुझे।
33 क्रोड़ देव बसते हैं,
होता है जहां मेरा वास,
भूत पिसाच भी नहीं आते वहां
जहां मििलता है मुझे मान।
बस में था तब तक मैंने,
जीवन भर अपना दूध पिलाया।
पर आज मैं बूढ़ी हूं
दूध देना मेरे बस में नहीं।
तुम्हारे घर को सदा ही
मैंने अपना घर समझा,
सदा ही, तुम्हारे घर में
धन भैवभ खुशहाली लाई,
सुख में तुम्हारे साथ रही,
दुख में भी बहुत रोई।
आज मैं बूढ़ी हूं,
केवल घास फूस तो खाती हूं,
कल लगता था मेरा गोवर भी पावन,
आज बोझ मैं ही लगती हूं।
जब आज मुझे घर से निकाला,
रोई मैं भी मां की तरह,
इससे तुम्हारा कहीं अहित न हो,
मांगती हूं ईश्वर से ये मन्नत बार बार।
मैं दूध का कर्ज नहीं मांग रही,
न ही चाहिये मुझे तुमहारे हिस्से की कोई चीज।
तुम मेरे लिये बस इतना करो,
मुझे भय है कहीं लोग,
कल मुझे भी
आवारा न कहें...
होती थी मेरी पूजा,
हर पूजा, यज्ञ के भोग का,
प्रथम अंश खिलाते थे मुझे।
33 क्रोड़ देव बसते हैं,
होता है जहां मेरा वास,
भूत पिसाच भी नहीं आते वहां
जहां मििलता है मुझे मान।
बस में था तब तक मैंने,
जीवन भर अपना दूध पिलाया।
पर आज मैं बूढ़ी हूं
दूध देना मेरे बस में नहीं।
तुम्हारे घर को सदा ही
मैंने अपना घर समझा,
सदा ही, तुम्हारे घर में
धन भैवभ खुशहाली लाई,
सुख में तुम्हारे साथ रही,
दुख में भी बहुत रोई।
आज मैं बूढ़ी हूं,
केवल घास फूस तो खाती हूं,
कल लगता था मेरा गोवर भी पावन,
आज बोझ मैं ही लगती हूं।
जब आज मुझे घर से निकाला,
रोई मैं भी मां की तरह,
इससे तुम्हारा कहीं अहित न हो,
मांगती हूं ईश्वर से ये मन्नत बार बार।
मैं दूध का कर्ज नहीं मांग रही,
न ही चाहिये मुझे तुमहारे हिस्से की कोई चीज।
तुम मेरे लिये बस इतना करो,
मुझे भय है कहीं लोग,
कल मुझे भी
आवारा न कहें...