स्वागत व अभिनंदन।

मंगलवार, सितंबर 09, 2014

आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

आता  हूं मैं मंदिर में,
निर्मल मन से,  धूप  जलाने, 
ईश्वर मेरी  सुनें, न सुनें,
आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

राम-नाम का एक शब्द,
महकाता है मेरी   रुह को,
शोर-गुल से दूर यहां,
आता हूं मैं  मन बहलाने...

कभी खोना, कभी पाना,
होता रहता है जीवन में,
आता हूं कभी नम आंखों से,     
 कभी खुशियों के पल बिताने...

अरज है बस एक मेरी,
बुलाते रहना इस दर पे,
आता रहूं,  पुष्प लेकर,
बस तुम्हारा आशीश पाने...

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  2. उसके दरवाजे तो हमेशा खुले रहता हैं ... सच्चे मन से आने की जरूरत है ...

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  3. अपनी सुना और चलता बन।
    --
    हाँ ...यही तो हो रहा है अब।

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  4. इंसान केवल अपना कष्ट को ही सुनाता है ,उनकी इशारा नहीं समझता !
    रब का इशारा

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आप का...

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