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सोमवार, अगस्त 04, 2014

मां उदास हूं, तुम बिन शहर में



मां उदास हूं, तुम बिन शहर में,
दिखते हैं ख्वाब, बस  गांव के,
चलना पड़ता हैं, यहां संभल के,
 काम ही काम, न आराम  यहां...

यहां आदमी तो  असंख्य हैं,
नज़र आता नहीं, इनसान यहां,
खामोशी है, न घर कोई,
दिखते हैं केवल, मकान यहां...               

यहां  फूलों में, वो खुशबू नहीं,
विहग भी,  गीत गाते नहीं,
पहचानते हैं, सब मुझे,
फिर भी हूं, अंजान यहां...

कहा था तुमने, शहर जाना,
पढ़ना-लिखना, पैसे कमाना,
न मिलती पैसे में, तुम्हारी मम्ता,
दौड़ाता है हरपल, तुफान यहां...

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    मेरे ब्लॉग का भी समर्थन करें |ख़ुशी होगी

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की मंगलवार ०५ अगस्त २०१४ की बुलेटिन -- भारतीयता से विलग होकर विकास नहीं– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
    एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
    सादर आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. शहर में सब अपनी ही धुन में खोये रहते हैं गांव जैसा माहौल शहर में कहाँ ....सच घर नहीं मकां में रहते हैं लोग
    ..सुन्दर संवेदनशील प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन संवेदनशील प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
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