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बुधवार, सितंबर 11, 2013

कह रही है हमसे हिंदी...

क्यों कम हुआ है मेरा महत्व,
आज खतरे में है मेरा अस्तित्व,
मुझे कैसे तुमने कमजोर समझा,
कह  रही है हमसे हिंदी...

भूल गये तुम मेरी मम्ता,
न पहचान सके मेरी क्षमता,
सुना तुमने जो औरों ने कहा
कह  रही है हमसे हिंदी...

मैंने रचा तुम्हारा इतिहास,
वर्ना क्या था तुम्हारे पास,
मैं न होती तुम स्वतंत्र न होते,
कह  रही है हमसे हिंदी...

राज विदेशियों का भगाया,
बाकी सब कुछ उनका  अपनाया,
कैसे कहोगे तुम हिंदी हो,
कह  रही है हमसे हिंदी...

  असीम है  मेरा शब्द भंडार,
फिर भी  समझी गयी  लाचार,
मोह लिया तुम्हे अंग्रेज़ी ने,
कह  रही है हमसे हिंदी...

शालीनता और शुद्ध उच्चारण,
नहीं है ऐसा किसी का व्यकरण
देवनागरी  सी  न लिपी दूसरी,
कह  रही है हमसे हिंदी...

रोता है मेरा स्वाभिमान,
कहां गया मेरा संमान,
तुम आजाद हुए मैं गुलाम बनी,
कह  रही है हमसे हिंदी...
कहा किसने हिंदी दिवस मनाना,
न   मेरी रूह को तड़फाना,
एक दिन क्यों ढौंग रचाना,
कह  रही है हमसे हिंदी...

समझते हो तुम जिसे विज्ञान,
जन्मा है वो मुझसे ज्ञान,
है जनक सब के वेद पुर्ाण,
कह  रही है हमसे हिंदी...

ठुकराया है जिसने मां को,
सदा ही पछताया है वो,
जागो अभी भी समय है,
कह  रही है हमसे हिंदी...

6 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी आज सचमुच अपना स्थान ढूंढ रही है अपने देश में ... पता नहीं कब हम इस माँ को उसका उचित स्थान देते हैं ... भावपूर्ण रचना ...

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  2. हिन्दी का अपना महत्व है उसे कम आंकने बाले ठीक नहीं करते |उम्दा कविता |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर जजबात..पता नहीं कब हिंदी को उसका उचित स्थान मिलेगा .

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदरभाव और अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
  6. हिंदी की पुकार व्यर्थ नहीं जाएगी

    जवाब देंहटाएं

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