स्वागत व अभिनंदन।

शनिवार, जुलाई 27, 2013

अहंकार



गुल था मैं गुलजार का,
पात्र था सब के प्यार का,
मुझसे चमन की रौनक थी,
मैं राजा था बहार का...

कामदेव सा सौंदर्य था,
न दूसरा था कोई मुझसा,
सभी गले मिलते थे,
 मनका  था मैं  गले के हार का...

मुर्झाते हुए फूलों पर,
हंसता था मैं अक्सर,
न समझा कभी माली को,
निष्ठुर था दिवार सा...

बैरी पवन  ऐसी चली,
धरा पे मुझे गिरा गयी छली,
मेरी हस्ती मिटने लगी,
न महत्व घटा गुलजार का,

मुर्झाए  हुए फूल को,
मिट्टी और धूल को,
कोई गले नहीं लगाता,
दस्तूर है संसार का...

जीवन में कभी अहंकार न करना,
मेरी तरह पछताओगे वरना,
मैं अल्प आयू में मुर्झा गया,
ये सिला मिला अहंकार का...

रविवार, जुलाई 21, 2013

अनुपम बलिदान...



कोई पत्थर को पूजता है,
किसी के लिये  पत्थर भी है   इनसान...
किसी की नजर में घर है मंदिर,
किसी की नजर में केवल मकान...

पन्ना मां ने अपना सुत,
देकर बचाया राज वंश,
देकर दान में कवज कुंडल,
गवाने पड़े कर्ण को प्राण...

एकलव्य ने देकर दक्षिणा,
श्रेष्ठ कतार में खड़े हुए,
दधिचि ने मानवता के लिये,
 निज  अस्थियों का किया दान...

सत्यवादी एक राजा,
सत्य की खातिर दास बने,
गुरु गोविंद ने धर्म के लिये,
चार पुत्र  किये कुर्वान...

भर लो नैनों में नीर,
स्मर्ण शहीदों का हो आया,
नमन है उनकी देश भगति को,
अनुपम है उनका बलिदान...

मंगलवार, जुलाई 16, 2013

कहा है ये सावन ने मुझसे...




प्कृति ने मेरा स्वागत किया,
जैसे धरा ने नव रूप लिया,
गा रहे है झरने,  नदियां  गान,
भर रहे हैं पंछी ऊंजी उड़ान,
आ रहे हैं मेघ मुझे मिलने,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

पर पाषाण हो गया आज आदमी,
जिसे सुद नहीं है मेरे आने की,
न मेलों में रौनक न वो खान पान,
खिले हैं फूल, पर उपवन सुनसान,
न झूलों की मस्ति न कागज की कशति,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

न करती कोई मेरी प्रतीक्षा,
न हो रहा है   प्रेम का ही संचार,
न तरस रही है मिलन को विरहन,
दिखावा सा लगा प्रीयसी का शृंगार,
न सुनायी देता वो गीत, संगीत,
कहा है  ये सावन ने मुझसे...

शुक्रवार, जुलाई 12, 2013

यही तो संसार है...



जो कल थे वो आज नहीं है,
जो आज है कल जाएंगे,
जग में रौनक कम न होगी,
कल कोई और ही आयेंगे।
आना जाना जीवन मृत्यु,
यही तो संसार है...

स्वार्थ से ही  बंधे हैं,
सब रिशते नाते व परिवार,
मोह माया में लिप्त है केवल,
है खुद पर सब को अहंकार,
वैवनस्य, नफरत और घृणा,
यही तो संसार है...

बेहिसाब करता है धन अर्जित,
जैसे साथ ले जाना है,
शड़यंत्र  लड़ाई जघड़ों में,
बिताता जीवन सारा है,
झल लोभ और महत्वाकाक्षाएं,
यही तो संसार है...

चड़ते सूरज को स्लाम,
पत्थर को मारते हैं ठोकर,
सब कुछ यहां नशवर है,
उदास न होना कुछ भी खोकर,
जहां श्री राम सुखी न रह सके,
यही तो संसार है...