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शनिवार, जनवरी 13, 2018

न जलता है अब वो आलाव

मेरे बचपन के दिनों में,
जब होता था हिमपात,
जलाकर आती-रात तक  आलाव,
बैठते थे सब एक साथ....
याद आती हैं सबसे अधिक
पूस-माघ की वो लंबी  रातें,
दादा-दाती की कहानियां,
बजुरगों की कही  सच्ची बातें....
अब तो  बर्फ के दिनों में भी,
आलाव नहीं, आग जलती है,
जो कर गये स्थान रिक्त,
उनकी कमी  खलती हैं....
बैठते तो हैं आज भी,
आग जलाकर एक साथ,
सबके हाथ में मोबाइल होता है,
नहीं करते आपस में बात....
न जलता है अब वो आलाव,
न वो मेल-मिलाप रहां,
न पहले सी बर्फ गिरती है,
अब पहले से लोग कहां....