भोर हो गयई नींद से जागो, कागज को हाथ में उठा लो,
जंता को बताओ सत्य क्या है, मेरी कलम कहती है मुझ से।
मैंने लिखी रामायण व गीता, बताया समाज को पवित्र थी सीता,
मचल रही हूं लिखने को आज भी, मेरी कलम कहती है मुझ से।
मैंने प्राधीन भारत की पीड़ा लिखी, सोए हिंदुस्तानियों को जगाया,
खून से आजादी की कहानी लिखी, मेरी कलम कहती है मुझ से।
चाहती हूं भ्रष्टाचार मिटाना, पुनः राम राज्य लाना,
स्वतंत्र होती मैं कोई मुजरिम न बचता, मेरी कलम कहती है मुझ से।
बहुत कुछ है लिखने को मेरे पास, न है वालमीकि न है व्यास,
कौन लिखेगा, सत्य आज, मेरी कलम कहती है मुझ से।
कालीदास आज भयभीत है, कलम का सिपाही गिन रहा है पैसे,
मैं तो दासी हूं लिखने वाले की, मेरी कलम कहती है मुझ से।