शनिवार, अगस्त 29, 2015

...बहनें अब जाग रही हैं...

सदियों से
अटूट समझा जाता  था
भाई-भहन का
 पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...

जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...

ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
 छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...

सोमवार, अगस्त 24, 2015

पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

अब जब भी चाहो
कहीं   भी
कर लेते हैं
बातें जी भरके
मुबाइल पर
एक दूसरे के साथ...
पर बार बार
बातें करने में भी
नहीं  मिलता वो आनंद
जो मिलता था
बार बार एक ही
चिठ्ठी  पड़ने में...
मिट गये हैं
दूरियों  के फांसले
मगर दिलों की दूरियां
बढ़ती जा रही है
आज सब के पास ही मोबाइल है
पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

शनिवार, अगस्त 22, 2015

प्रीय तिमिर

मैं और तुम
साथ हैं
तब से
जब से मैं
आया हूं यहां...
क्या कहा था
ईश्वर ने तुमसे
जब तुम्हे मेरे पास
भेजा था
मेरे जन्म के साथ ही...

मुझे तो
याद नहीं
अपने पूर्व जन्म
 की कोई  कहानी
न इस जन्म की
कोई घटना...

मुझे क्यों
मिले तुम ही
मैं ईश्वर को
दोष नहीं दे रहा हूं
    बस पूछ रहा हूं...

मैं तुम्हारे साथ
खुश हूं हमेशा
जैसे निशा
 प्रसन्न है
तुम्हारे साथ...

प्रीय तिमिर
तुमने मुझे
जकड़  रखा है इसकदर
न दीपक के
प्रकाश की आवश्यक्ता
न रात होने का भय...
    

मंगलवार, अगस्त 18, 2015

रोती है बस वो...

उस औरत को
न्याय मिल सकता है
वो पढ़ी लिखी   है
 जानती है
हर उस कानून के बारे में
जो बने हैं
उसके संरक्षण के लिये...

फिर भी वो
सह रही है
मार-पीट
और हिंसा
एक शराबी की
जो शराब भी
उसकी कमाई से
पीता है...

उसे याद है
विदाई के समय
नम आंखों से
कहा था मां  ने
जा बेटा अब
खुश रहना
उस बड़े कुल  में...

मायका भी
अब  हो गया पराया
जाएं कहां
बच्चे भी हैं,
 अकेले मे
जी भर के
रोती है बस वो...

बुधवार, अगस्त 12, 2015

ये अमर गाथा आजादी की।

जब लहराता है
 लाल किले पर
अखंड देश का
 प्यारा  तिरंगा
झुक जाता है
मस्तक मेरा
करने को नमन
इन शहीदों को।

हमारी तरह ही
अगर ये भी
सुख वैभव से
जीवन जीते।
हम आज भी
जकड़े होते
विदेशियों की
प्राधीन बेड़ियों में।

कहा माओं से
बुला रही है मां
तेरे दूध की
परीक्षा है।
आने वाले
कल की खातिर
मांग रही हैं तुमसे
तुम्हारा आज।

हम माएं है इनकी
केवल इस जन्म में
तुम मां हो
युगों-युगों से
सौ पुत्र भी
होते एक के
सहर्ष भेजते
चरणों में तुम्हारे।

जाओ बेटा
न देर करो
जाग उठा है
नसीब तुम्हारा।
ये जन्म भूमि ही
कर्म भूमि है
आज से
केवल तुम्हारी।



सूरज चांद
सितारों ने देखी
अनुपम  कुर्वानी
शहीदों की।
स्वर्णिम अक्षरों में
इतिहास ने लिखी
ये अमर गाथा
आजादी की।

मंगलवार, अगस्त 11, 2015

विजय तुम्हारी।

क्यों होते हो
बार बार उदास
सब कुछ है
आज तुम्हारे पास।
कुछ खोना
हार नहीं है
जो खोया है
उसे पाना सीखो
पहले सोचो
क्यों हारे हो
फिर विचार करो
कैसे जीतोगे।
देती है जिंदगी
बार बार अवसर
भर देगा वक्त
सारे घाव।
असफलता  को
अनुभव समझो
हार को न
अब याद करो।
अटल मन से
विजय के पथ पर
बिना रुके ही
चलते रहो।
उदय होगा जब
कल का सूरज
साथ लायेगा
विजय तुम्हारी।

शनिवार, अगस्त 08, 2015

उदास खामोशी

एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
 नदियों  की तरह।
ये नदियां  भी
 कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन  के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।

एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।


उस नदि की
कल कल करती
 आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास    खामोशी का।

शनिवार, अगस्त 01, 2015

मौत...

जन्म के साथ ही
मृत्यु भी
चलती है साथ
छाया की तरह।

मौत तो
हर क्षण ही
शत्रु की तरह
खोजती है अवसर

होता है जो
बुझदिल और कायर
उसे शिघ्र
बना लेती है अपना।

 वीरों से तो
भय लगता है
उसको भी
दूर दूर ही रहती है।

आती है
कयी  रूप रंग बदलकर
पर वीर तो
उसे पहचान लेते हैं।

हर साहसी को
वर्दान  होता है
इच्झा  मृत्यु का
भिष्म की तरह...