शुक्रवार, जनवरी 30, 2015

युग पुरुष

न सिंहासन मांगा
न जंग थी किसी से
फिर क्यों छलनी किया
एक संत को निज गोली से।
कांपते हाथों से तुमने
प्राण लिये जिसके
वो केवल  मानव  नहीं
युगपुरुष थे।
भस्म हो जाते तुम वहीं
अगर अहिंसा के पुजारी   बापू
राम राम कहते हुए
तुम्हे क्षमा न करते।
युगपुरुष की हत्या
होती है ऐसे ही
मारा था माधव को भी
छल से एक शिकारी ने।
क्यों दी फांसी
इस  अश्वस्थामा  को
जलने देते सदा
प्राश्चित  की आग में।

बुधवार, जनवरी 21, 2015

आना है तो, महमान बनके आओ।

आना है तो,  महमान बनके आओ,
तुम क्या हो,  हमे न ये  दिखाओ,
तुम कौन हो,  पता है हमे
हम क्या है, ये भी जान जाओ...
तुम जैसे कयी आये
जय कह गये इस धरा की
जो देखोगे यहां तुम,
कहीं और हमे दिखाओ...
आकर्षण  है इस मिट्टी में
आते हैं सब बार बार,
हकीकत में जीवन जीयो,
ये दिखावा भूल जाओ...
जो देखा है तुमने आज,
हज़ारों वर्ष पहले यहां था,
क्या करना है हमें
हमे न ये सिखायो...

रविवार, जनवरी 04, 2015

"निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"

एक मासूम के साथ
हुआ दुशकर्म भी
टिवी चैनलों पर
नमक मिर्च लगाकर दिखाना
टिवी चैनल को
प्रसिद्धि दिलाने का ही
माधयम बन गया है।

अगर ऐसा न होता तो
ये चैनल
कभी पिड़िता के भाई से
कभी पिता से
कभी रोती हुई मां को
अपने चैनल पर बुलाकर
उनकी  अंतर   वेदना न पूछते।

ऐसी खबरों को  सब से पहले
 दिखाने की प्रतिसपर्धा की जगह
अगर ये टीनी चैनल
अपने कैमरे  सड़कों या गलियों  में  लगाते
सोए हुए प्रशासन को जगाते
कहां है असुर्क्षा  जंता को बताते
            "निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"