मंगलवार, जनवरी 26, 2016

झुलस रहा है गणतंत्र भी

तिरंगा तो
लहरा रहा है
सुनो, समझो,
कुछ कह रहा है।
हम भूल रहे हैं
संविधान  को
देते हैं गाली
राष्ट्र गान को...

आज हजारों
माखन चोर
पीड़ित  हैं
कुपोषण  से।
मासूम किशोरों
के सपने
बेबस हैं

कारखानों में...
चाहते थे करना
जो अथक काम
उनके पास
रोजगार नहीं है।
जिन के पास
अनुभव हैं
वो सीमित कर दिये
आश्रमों में...

न जान सकी
जनता अब तक
अपने मत का
मोल ही।
बन गया चुनाव
खेल अब
जीतते  हैं
केवल पैसे वाले...
हर तऱफ
भ्रष्टाचार है
संसद देश की
बिलकुल लाचार है।
देखो आज
झुलस  रहा है
गणतंत्र भी
धर्म की आग में...

शनिवार, जनवरी 23, 2016

कहां गुमनाम हो गये।

तुम्हारी कुर्वानी से
हम आजाद हो गये
तुम गये कहां
कहां गुमनाम हो गये।
आजादी के बाद
राज मिला उनको
जो देश को भूलकर
राज भोग में खो गये।
जो देखा था
आजादी का सपना तुमने
सपना पूरा हुआ ही था
हम फिर सपनों में खो गये।
अगर होते तुम
देश का ये हाल न होता
तुम्हें मिटाकर वो
खुद दावेदार हो गये।

तब तक  कैसे बदलेगा समाज  और देश।

हम सब
चाहते हैं बदलना
समाज  को,
देश  को।
चाहते हैं हम
कड़े कानून बने
पर क्या हम खुद
हर कानून का पालन करते हैं?।
  चाहते हैं सभी
भ्रष्टाचार न हो
जब देते हैं हम
तभी कोई रिशवत लेता है।
दशम गुरु ने पहले खुद
अर्पण किये  चार लाल
फिर कहा सब से
शहादत दो।
नहीं बदलते
जब तक खुद को
तब तक  कैसे बदलेगा
समाज  और देश।

गुरुवार, जनवरी 21, 2016

बंटवारा


नहीं बिखरते परिवार
अगर घर के
 छोटे-मोटे  झगड़े
 सुलझ चाए,
घर में ही।
जब घर के झगड़े
आस-पड़ोस की
चर्चाओं में सुनाई देने लगे
समझ लो
घर टूटने वाला है।
जब एक  भाई का
 दूसरे भाई से
बंटवारा होता है
मां तो रोती है
पर ईश्वर हंसता है।

शुक्रवार, जनवरी 15, 2016

तलाश...

जयचंद
और
पृथ्वीराज
दोनों का ही
 जन्म होता है
हर काल  में
हर देश में।
गौरी  को
तलाश रहती है
हर हमले से पहले
जयचंद  की
वह जानता है
बिना जयचंद के
मुमकिन नहीं विजय।
पृथ्वीराज
अगर पहचान जाए
जयचंद को
तो दंड देता है,
न पहचान सका तो
खुद ही मारा जाता है।

गुरुवार, जनवरी 14, 2016

मकर संक्रांति वर्ष में, दिवस है सब से पावन...


मकर संक्रांति वर्ष में,
दिवस है सब से पावन,
जीवन और वातावरण में
 होता है दिव्य परिवर्तन।
सूर्य देव  का होने लगा
उत्तर को अब  गमन
 अंधकार सब दूर हुआ,
हुआ धरा पर चानण।
प्रातः ही  नदियों पर जाकर
करना  पावन स्नान,
फिर ईश्वर की वंदना करके,
दोनों हाथों से करना दान।
नकारात्मकता  को नष्ट करो,
कहता है ये पर्व,
    जीवन में उच्च कर्म करो,
धरा ही है स्वर्ग।

बुधवार, जनवरी 13, 2016

कर रही है लोहड़ी   आवाहन सबसे।

आयी लोहड़ी ,
लेकर खुशिया।
बदली रुत
दूर हुई ठंड
आलस्य सुस्ती
दूर हुई अब।
लोहड़ी  जलाओ
जी भर के खाओ,
नशवर है जीवन
बस नाचो-गाओ...
लोहड़ी    केवल
पर्व नहीं है।
लोहड़ी   है
एक  संदेश,
नफरत भुलाओं,
न रखो क्लेश।
बच्चों की हुडदंग
बालाओं के गीत
जलता अलाव
है भाईचारे की जीत...
कर रही है लोहड़ी  
आवाहन सबसे।
न डाकू कहो
दुल्ला भट्टी को,
न होने देता था
अन्याय वो।
वो लूटता था
लुटेरों का खजाना,
चाहता था देश में
पुनः स्वराज लाना...

सोमवार, जनवरी 11, 2016

शहरों की ओर जाते रहे...

घर नहीं, मकान  बनाते रहे
रंगीन नकाशियों से, चमकाते रहे,
मकान तो बन गया राजमहल सा
 सब शहरों  की ओर   जाते रहे...
ये बड़ा शहर हैं
यहां मोटे किराए  का छोटा घर है,
रौनक थी गांव के घरों में
यहां आवाज़  को भी  अपनी दबाते रहे...
अपनी दाल थी अपनी रोटी,
 नहीं पड़ता था कहीं दूर जाना,
सुविधाएं तो बेशुमार हैं,
भाईचारे को भूलाते रहे...
होते थे हम हैरान
जब आयी थी गांव में नयी मशीने,
अब बन गये खुद ही  मशीन,
उन मशीनों को भूलाते रहे...
कहां खो गया वो    मेरा गांव
वो मक्की की रोटी, उस पेड़ की छांव,
सावन सूना,  सूना माघ भी,
बिल भर भर कर घबराते रहे...


गुरुवार, जनवरी 07, 2016

...पर उनकी तलाश पूरी नहीं होती...

मुझे याद है
जाते वक़्त उसने
कहा था मुझसे
...तुम जैसे हज़ार मिलेंगे...
मैं ये  सुनकर
चौंका पर मौन रहा
मुझे ठुकराकर
 ...फिर मुझ जैसे की ही  तलाश क्यों?...
कुछ लोग जीवन भर ही
एक अच्छे के बाद और अच्छे की तलाश में
 न जाने कितनों को तबाह कर देते हैं
...पर उनकी तलाश पूरी नहीं होती...


मंगलवार, जनवरी 05, 2016

नमन है उस शहादत को...

ये सत्य है
जो आया है
उसे जाना भी है,
मौत निश्चित है सब की।
कुछ तो
दोड़ देते हैं दम
बिसतर पर ही,
किसी को पता भी नहीं चलता।
कोई मरता है
गले में लगा कर फंदा
जिस की मौत पर
केवल चर्चा होती है।
एक घटोत्कच  की तरह
देश की लिये शहीद होता है
जो मरते हुए भी
हजारों को मारता है।
नमन हैं
उस शहादत को
जो अपनी अल्प आयु देकर
सब को लंबी आयु देते हैं...