मंगलवार, मई 27, 2014

हम रहें या न रहें, रहेगा सदा वतन




[ भारत के नव नियुक्त प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी द्वारा चुनाव से पहले या बाद में  अपने भाषणों में भारत मां की वंदना में कुछ शब्द कहे गये हैं, उन्हे ही कविता का रूप देने का प्रयास कर रहा हूं]

हम रहें  या  न रहें,
रहेगा सदा वतन,
खिलते रहेंगे, नये फूल,
महकता रहेगा सदा ये   चमन...

असंख्य हैं सुत मां के,
जो चाहत न रखते कुछ भी मां से।
करते अपना सर्वस्व अर्पण,
साक्षी है 10 दिशाएं, गग्न.........

अनेकों वीर,  शहीद हुए,
कुछ वतन के लिये,  ही जिये,
पटेल   जैसे सपूतों ने,
दिया मां को, सुर्क्षा का वचन...

कर सकूं सेवा,  मैं भी मां की,
जीवन सफल,  होगा तभी,
मां मुझे केवल  ये शकती दो,
कोटी कोटी, तुम्हे नमन...

सोमवार, मई 26, 2014

केवल समय गवाया हमने,



पत्थर को इनसान समझकर,
मन मंदिर में बसाया हमने...
याद करके अब तक उन को,
केवल समय गवाया हमने,

न देखी वर्षों से  बसंत  बहार,
न सावन आया, न महका गुलज़ार,
नैनों में तस्वीर थी उनकी,
उन्हे बुलाते हुए, हर पल बिताया...

जलकर पतंगा खाक हुआ,
दिपक तो फिर भी जलता रहा,
ऐ परवाने तेरी तरह ही,
हर पल खुद को जलाया हमने...

आकर्षण को तुमने प्रेम माना,
 मन का सौंदर्य न पहचाना,
स्तंभ  है प्रेम का केवल  विश्वास,
हर कदम पे धोखा खाया हमने...

शनिवार, मई 17, 2014

जंता का है ये आदेश...





जंता ने सोच-समझ कर,
दिया है  जनादेश,
लगता है सुर्क्षित है अब,
हमारा प्यारा भारत  देश...

सब से बड़ा लोकतंत्र,
प्रसन्न दिखा वर्षो बाद,
उमीदों की नयी सुबह हुई,
जन समर्थकों  का हुआ संसद में प्रवेश...

महंगाई  अब  दूर करना,
वापिस लाना काला धन,
तुम भी भ्रष्टाचार न करना,
ये है जंता का आदेश...