गुरुवार, अक्तूबर 31, 2013

धरा मानव से कह रही है...



धरा मानव से कह रही है,
मुझे  तुमने बंजर   बनाया...
कर दिये जंगल बिलकुल  खाली,
नदियों का भी  जल सुखाया...

कहते हो तुम खुद को महान,
श्रेष्ठ है तुम्हारा ज्ञान, विज्ञान,
केवल चंद वर्षों के सुख के लिये,
सदियों का सुख लुटाया...

मिटा दिये तुमने असंख्य जीव,
टिकी हुई थी जिन पे मेरी नीव,
तुम्हारे नित्य नये आविष्कारों ने,
मुझे केवल असहाय बनाया...

पीड़ा से  जब मैं कराही,

हड़कंप  मचा हुई तबाही,
आंसू बहे तो बाड़ आयी,
हिली ही केवल,  भूकंप आया...

कब होगी तबाही, जान लिया,
दोषी भी खुद को मान लिया,
संभल जाओ वक्त अभी भी  है,
विनाश का निकट वक्त  है आया...





मंगलवार, अक्तूबर 29, 2013

जिसने इसे पत्थर बनाया...



सुबह चलते हुए पथ में,
पैर एक पत्थर से टकराया,
चोट लगी कुछ रक्त  बहा,
फिरक कदम आगे को बढ़ाया।
गलती  मेरी ही थी,
जिसे संभल कर न चलना आया।
दोषीतो  वो है,
जिसने इसे पत्थर बनाया।
खुद भी खाता है ये सब की ठोकर,
न खुद ये इस पथ पे आया।

शुक्रवार, अक्तूबर 25, 2013

जय, जय, जय शोभन सरकार...



आने वाले हैं अब चुनाव,
कहां है सौना मुझे बताओ,
कृपा करो मुझ पर अब,
जय, जय, जय  शोभन सरकार...

मिलता मुझे येसौना सारा,
चमक जाता भाग्य का  सितारा,
देता नोट, लेता वोट,
जय, जय, जय  शोभन सरकार...

जंता के बीच कैसे जाऊं,
क्या अपनी मजबूरी बताऊं,
न कर सका पूरे चुनावी वादे,
जय, जय, जय  शोभन सरकार...

रात को अब नींद न आती,
दिन को  कुर्सी की चिंता सताती,
जो भी कहो,  मैं दूंगा जीतकर,
जय, जय, जय  शोभन सरकार...

जब जीतकर मैं आऊंगा,
तुम्हारे मंदिर को महल बनाउंगा,
तुम्हे विश्व ख्याती दिलाउंगा
जय, जय, जय  शोभन सरकार...


शनिवार, अक्तूबर 19, 2013

मनमर्जी से देश चलाएं...



मैं भी चोर, तुम भी चोर,
फिर संसद में कैसा शोर,
क्यों इक दूजे पर आरोप लगाएं,
बंद कमरों में मुद्दे सुलझाएं...

जंता तो है भोलीभाली,
कोष देश का हो रहा है खाली,
100 प्रतिशत महंगाई बढ़ाएं,
कारण जंता को मिलकर समझाएं...

पांच पांच वर्ष दोनों को,
त्यागना होगा कुर्सी का मोह,
बारी बारी सरकार बनाएं,
आधा आधा दोनों खाएं...

शोर मचाना है भ्रष्टाचार,
गिरानी होगी आपसी दिवार,
एइक  दूजे को जेल जाने से बचाएं,
आरोपों की सभी फाइलें दफनाएं...

समझौता आपसी करना होगा,
वर्ना किया है जो, भरना होगा,
आओ दोनों हाथ मिलाएं,
मन मर्जी से देश चलाएं...